हज़रत-ए-शैख़ अबदुल क़ुद्दूस गंगोही
रहमतुह अल्लाह अलैहि
आप की विलादत बा सआदत ८६१ हिज्री में रो दिल्ली इंडिया में हुई। आप का इस्म गिरामी शेख़ अबदुल क़ुद्दूस और आप के वालिद का नाम शेख़ इस्माईल है।आप अपनी तालीम ज़्यादा देर तक जारी ना रख सके क्योंकि आप को ज़ाहिरी तालीम और शगल से कोई दिलचस्पी ना थी।आप बातिनी इलम हासिल करना चाहते थे।
एक दिन अचानक अबदुल क़ुद्दूस के सीने में ना जाने कैसी आग भड़की कि आप पर जज़ब की कफ़ीत तारी हो गई ।वज्द के आलम में अपने कपड़े चाक कर डाले और नारे मारते बाहर निकल गए।उस वक़्त आप के वालिद इंतिक़ाल कर चुके थे ।जब आप की वालिदा मुहतरमा ने जब आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की ये हालत देखी तो सख़्त परेशान हुई और अपने भाई क़ाज़ी दानयाल के पास गई जो शहर के हाकिम थे। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की वालिदा मुहतरमा ने सारी सूरत-ए-हाल अपने भाई को बताई तो आप के भाई क़ाज़ी दानयाल ने कारिंदों को भेज कर भांजे को बुलवा लिया। आप के भाई ने हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि को अपने पास बिठा कर नरमी से पूछा क़ुद्दूस ये क्या हालत बना रखी है माँ को क्यों तंग करते हो और तालीम क्यों छोड़ दी है याद रखू अगर तुम ने यही हाल बनाए रखा तो हम तुझ को सख़्त सज़ा देंगे।
हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि ने ये सन कर चिल्ला चला कर कहना शुरू किया कि हम सज़ा लेंगे हमें सख़्त सज़ा दो। इस दौरान कहीं से गीत की आवाज़ आई। गीत का अबदुल क़ुद्दूस रहमतुह अल्लाह अलैहि के कानों में पड़ना था कि वज्द में आगए और हालत ग़ैर होगई। मामूं ने भांजे का जो ये हाल देखा तो दुख से बहन से कहा कि परेशान ना हो उसे इस के हाल पर छोड़ दो। ये क़ैस बिन चुका है सहरा ही इस के मर्ज़ का वाहिद ईलाज है उसे कुछ ना कहो।
अब तो हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि को जैसे खुली छुट्टी मिल चुकी थी। सारा वक़्त मजज़ूबों और कलन्दरों की सोहबत में रहते मगर किसी पल क़रार ना था। सीने में जो आग भड़की थी वो किसी तौर पर बुझने का नाम ना ले रही थी। वो बेखु़द होकर कभी किधर निकल जाते तो कभी किधर निकल जाते। कभी दिल की तपिश बढ़ने लगती तो वीरानों में निकल जाते। कभी मुख़्तलिफ़ बुज़्रगान-ए-दीन - के मक़बरों पर हाज़िरी देते। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ज़्यादा तर शेख़ अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि के मक़बरे पर वक़्त गुज़ारते। रोज़ाना आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के मज़ार पर झाड़ू देते थे।
शेख़ अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि की दरगाह के सज्जादा नशीन शेख़ मुहम्मद रहमतुह अल्लाह अलैहि नौजवान थे और हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि के हमउमर भी थे। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि को उन से मुहब्बत तो थी लेकिन वो अक़ीदत ना थी जो किसी मुरीद को मुर्शिद से होती है। एक दिन हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि हज़रत अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि के मक़बरे पर इबादत में मसरूफ़ थे कि अचानक हज़रत अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि नमूदार हुए और आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का हाथ थाम कर अपने पोते शेख़ मुहम्मद रहमतुह अल्लाह अलैहि के पास ले गए और इस के हाथ में दे दिया। हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि ने हज़रत-ए-शैख़ मुहम्मद का हाथ थाम कर उसे बोसा दिया और इनकिसारी के अंदाज़ में कहा कि ए शेख़ मुझे थाम लीजीए।
हज़रत-ए-शैख़ मुहम्मद रहमतुह अल्लाह अलैहि ने मुर्शिद होने के बावजूद आप रहमतुह अल्लाह अलैहि से मुरीदों वाला बरताओ ना किया बल्कि इज्जत-ओ-एहतराम से पेश आते और हमरुतबा रफ़ीक़ की तरह आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के साथ इबादत-ओ-रियाज़त करते। हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि ने भी अपनी मुरीदी के इबतिदाई दौर में सख़्त मुजाहिदे किए ।आप रहमतुह अल्लाह अलैहि हमेशा हज़रत-ए-शैख़ अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि के मज़ार पर ख़ुद झाड़ू देते, पानी भर कर लाते और झाड़ पोनझ करते।
हज़रत-ए-शैख़ मुहम्मद रहमतुह अल्लाह अलैहि की बड़ी बहन एक सालिह ख़ातून थी लेकिन क़िस्मत की सितम ज़रीफ़ी से ऐसे शख़्स से ब्याही गई जो हरगिज़ आप के काबिल ना था। आप जितनी पाकबाज़ और इबादतगुज़ार थीं वो शख़्स इतना ही कीनापरवर और बदआमाल था। चुनाचे उन की ज़िंदगी जहन्नुम का नमूना बनी हुई थी। हज़रत-ए-शैख़ मुहम्मद रहमतुह अल्लाह अलैहि और उन की वालिदा उम कुलसूम बेटी की हालत देखती तो उन को बड़ा दुख होता था। उन की एक छोटी बेटी भी थी जिन के बारे में वो साबिक़ा तजुर्बे की रोशनी में सख़्त परेशान थी।
हज़रत-ए-शैख़ मुहम्मद रहमतुह अल्लाह अलैहि की वालिदा उम कुलसूम ने एक रात ख़ाब देखा कि उन के बेटे शेख़ मुहम्मद रहमतुह अल्लाह अलैहि का मुरीद हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि वज्द की हालत में समाव में है और इस का एक पांव भी टूटा हुआ है। अभी वो इस पर ग़ौर कररही थीं कि अचानक ख़ाब में हज़रत अबदुलहक़ रहमतुह अल्लाह अलैहि नमूदार हुए और कहा इस बच्चे को अपने साय में ले लो। ये मासूम और शरीफ़ अल्लाह का और मेरा प्यारा है।
जिस दिन से आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की वालिदा ने ये ख़ाब देखा था तब से बेचैन थीं कि हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि से कैसे बात की जाये। फिर रब उल-अज़ीम ने एक दिन उन की ये मुश्किल भी हल करदी। घर की एक कनीज़ जब हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि से कपड़े लेने गई तो इस के दिल में शरारत सूझी बोली हज़रत अब तो आप जैसे जवान शादी करके बाप बने फिरते हैं आप का क्या इरादा है। क्या सारी उम्र ऐसे ही गुज़ार दोगे। हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि कनीज़ की ये बात सन कर मुस्कुराए और बोले बीबी तुम जानती हो भला मुझ जैसे शब-ओ-रोज़ गुज़ारने वाले दरवेश को अपनी बेटी कौन देगा। और फिर भला में अपनी आज़ाद ज़िंदगी को क्यों खोदों। लेकिन कनीज़ कहाँ छोड़ने वाली थी कहने लगी में तो कहती हूँ कि आप अपने पैर शेख़ मुहम्मद रहमतुह अल्लाह अलैहि की छोटी बहन से अक़द करलीं दोनों की जोड़ी ख़ूब अच्छी रहेगी।
ये बात हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि के दिल को लगी और उन के दिल में शादी की ख़ाहिश पैदा होगई। और इस का ज़िक्र उन्हों ने अपने एक मुरब्बी के साथ किया जो उन के साथ रहते थे। वो भी बहुत ख़ुश हुए और कहने लगे कि में आज ही आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की तरफ़ से शादी का पैग़ाम लेकर जाता हूँ । जब वो शादी का पैग़ाम लेकर गए तो वालिदा ने झटपट पैग़ाम मंज़ूर करलिया। चुनांचे आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की शादी हज़रत-ए-शैख़ मुहम्मद रहमतुह अल्लाह अलैहि की बहन से करदी गई।
सिकन्दर लोधी का ज़माना था और मशहूर बुज़ुर्ग शेख़ हुसाम उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि शुबा एहतिसाब के सरबराह बना दीए ।आप के ज़िम्मा देन में दाख़िल बिदआत का ख़ातमा करना था ।आप ने गुजरात, दक्कन और मालवी के कामयाब दौरे किए और बिदआत का ख़ातमा किया।इस के बाद जब आप ने पानीपत में बिदआत के ख़ातमे केलिए पहुंचे तो वहां हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि के बारे में सुना कि वो ख़ुद को क़ुतुब अलाक़ताब कहलाते हैं और ग़ैर शरई कामों में मुलव्वस हैं ।चुनांचे आप ने हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि को पैग़ाम भिजवाया कि शरीयत रसूल की पाबंदी करें और वज्द-ओ-सुरूर की हालतों से दूर रहें। हज़रत अबद अलक़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि ने ख़ंदापेशानी से पैग़ाम भिजवाया कि अहकाम शरई से रद्द गरदानी किसी तौर पर भी मुनासिब नहीं ।हम अल्लाह के हुज़ूर तौबा करते हैं और आइन्दा बचने की दुआ मांगते हैं।
हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि इस बाद वाक़ई चंद दिन समाव से दूर रहे।लोग समझ रहे थे कि आप मुहतसिब आला से ख़ाइफ़ हो चुके हैं इस लिए समाव के नज़दीक नहीं जाते।अभी समाव से दूर हुए चंद ही दिन गुज़रे थे कि एक रात जब आप तहज्जुद के लिए उठे तो आप के कानों में किसी औरत के दोहे गाने की आवाज़ आई ।इस के दर्द भरे बोल सुने तो उसी वक़्त वज्द में आ गए और दीवाना वार रक़्स करने लगे।जब ज़रा होश में आए तो शेख़ हुसाम उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि को कहला भेजा कि में एक आतशज़दा लक्कड़ी की मानिंद हो चुका हूँ और आप जानते हैं कि आतशज़दा लक्कड़ी सेना तो जंगल की ख़ुशक लक्कड़ी बच सकती है और ना कोई चीज़।जो कोई चीज़ उस की गिरिफ़त में आती है उस को जिला डालती है।आप मेरी ये कफ़ीत दूर कर सकते हैं तो तशरीफ़ যब लाएंगे में आप का एहसानमंद हूँगा।
ये पैग़ाम सन कर शेख़ हुसाम उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि ने चंद बुज़ुर्गों को हमराह लिया और हाथ में दर्रा लेकर आप की ख़ानक़ाह की तरफ़ रवाना हो गए।जब आप वहां पहुंचे तो हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि दीवाना वार रक़्स कर रहे थे ।आप को देखते ही दफ़्फ़ातन शेख़ हुसाम उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि की हालत में एक तग़य्युर रौनुमा हुआ , अपनी दस्तार उतार फेंकी और नारा बुलंद करते हुए हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि के गर्द परवाने की तरह घूमने लगे।जब ज़रा होश में आए तो लोगों ने पूछा कि हज़रत आप को क्या हो गया था।कहने लगे कि हम ग़लती पर थे हम तारीकी में थे हमें आज उजाला नसीब हुआहै। ये बात सन कर हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि बोले रोशनी तो अभी बहुत दौर की बात है लेकिन इतमीनान रखू एक रोज़ वो तुम्हारा मुक़द्दर बनेगी।
हज़रत अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि फ़ारसी और हिन्दी शायर की हस्ीत से बुलंद मुक़ाम रखते हैं।इस के इलावा नस्र में भी आप के किताबें तहरीर कीं हैं।अनवार अलओन आप की मशहूर किताब है। शेख़ अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि ने सोफिया-ए-के दो मुरातिब का ज़िक्र किया है।मर्तबा-ए-उरूज ,मर्तबा-ए-नुज़ूल
उरूज वो मर्तबा है जिस में रूह अपने असल वतन की तरफ़ लूट जाती है और लज़्ज़त विसाल से हमकनार हो कर हिजर-ओ-फ़िराक़ के मर्तबा की तरफ़ लूट आती है। अरिफा-ए-के नज़दीक उरूज का दर्जा नुज़ूल के दर्जे से कम है इस लिए कि उरूज तकमील का सफ़र है जबकि नुज़ूल अपने तकमील के बाद दूसरों की तकमील का मुतक़ाज़ी है और ये मरहला पहले मरहले की निसबत आज़माईश तलब, पर कठिन और सब्र आज़मा होता है। शेख़ गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि के इरशाद के मुताबिक़ हुज़ूर सुरूर कौन-ओ-मकां सिल्ली अल्लाह अलैहि वाला वसल्लम का कमाल था कि वो इस रिफात-ए-णौ॒ णद॒नय से वापिस लूट आए।
शेख़ अबदुल क़ुद्दूस गंगोही रहमतुह अल्लाह अलैहि फ़रमाते हैं कि अगर मुझे वहां जाना नसीब होता तो वापिस आने का कभी नाम ना लेता। मतलब ये है कि एक तो मुझ में इतनी रुहानी तवानाई ना होती कि में अपनी जिस्मानी इकाई को बरक़रार रख सकता। दूसरे अपनी ज़ात में इस क़दर मगन हो जाता और ख़ुदग़रज़ी मुझ पर इस क़दर ग़ालिब आ जाती कि में आलम इंसानियत को भूल कर सिर्फ़ अपना ही हो कर रह जाता।
हुज़ूर सिल्ली अल्लाह अलैहि वाला वसल्लम की अज़मत ये है कि वो इतनी बुलंदीयों पर पहुंचने के बाद लूट आए। शऊर बंदगी और एहसास बंदगी हर क़दम पर दामन गीर रहा, चुनांचे आप सिल्ली अल्लाह अलैहि वाला वसल्लम अज़्मतों की ख़िलअत-ए-फ़ाख़िरा अता होने के बाद भी अपनी ज़ात में ग़म नहीं हुए बल्कि उन्हें हर लम्हा हम गुनहगारों की हिदायत और इस्लाह का ख़्याल रहा। आप सिल्ली अल्लाह अलैहि वाला वसल्लम इतनी रुहानी कुव्वतों के मालिक थे कि अनवार-ओ-तजल्लियात की मुसलसल बारिश में अपनी ज़ात की इकाई को सलामत रखने में कामयाब-ओ-कामरान रहे और वापिस ज़मीन की तरफ़ भी लूट आए कि इस कुर्रा-ए-अर्ज़ी पर बसने वाले इंसानों को अस्नाम परस्ती के तारीक गारों से निकाल कर तौहीद परस्ती के हल्का-ए-अनवार में दाख़िल करना था। ये वही ज़मीन थी जहां पत्थरों की बारिश में भी आप सिल्ली अल्लाह अलैहि वाला वसल्लम ने पर्चम तौहीद उठाए रखा। जहां क़दम क़दम पर आप के ख़ून के प्यासे आप के ख़िलाफ़ साज़िशों में मसरूफ़ थे। शान रिसालत यही थी कि अल्लाह की मदद पर भरोसा करते हुए और उस की ताईद-ओ-नुसरत पर कामिल यक़ीन रखते हुए दिलों के क़ुफ़ुल तोड़े जाएं और उन के सीनों को तौहीद के नूर से मुनव्वर किया जाये
आप ३० जमादी अलाख़र ९४५ हिज्री को इसदार फ़ानी से रुख़स्त हुए। आप की आख़िरी आरामगाह गंगोह ज़िला सहारन पर इंडिया में है।